जावेद खाटीक नामी शख्स ने 85 हजार की रकम असल मालिक तक पहुंचाई
आज के दौर में जब समाज में धर्म और जाति के नाम पर दूरियाँ बढ़ रही हैं, मालेगांव के जावेद खाटीक ने एक ऐसी मिसाल पेश की है जिसने ये साबित कर दिया कि हिंदुस्तान में इंसानियत और भाईचारा आज भी जिंदा है। जावेद खाटीक ने अपने नेक कदम से न केवल एक गरीब हिंदू किसान की मदद की, बल्कि यह भी दिखा दिया कि सच्ची एकता किसी मजहब या धर्म की मोहताज नहीं होती, बल्कि इंसानियत की नींव पर टिकी होती है।
सटाना बाजार में भाऊराव मंगू पवार, जो अपने मेंढियों को बेचने आए थे, अपनी मेहनत की कमाई 85,000 रुपये खो बैठे थे। उन पैसों के गुम हो जाने से उनकी हालत बेहद खराब हो गई थी। सोचिए, एक गरीब किसान के लिए उसकी सारी जमा पूंजी खो देना कितना दुखदायी होता है। पूरे दिन वो इधर-उधर भटकते रहे, लेकिन उनकी उम्मीद जैसे खत्म हो गई थी।
फिर, इसी बीच मालेगांव के जावेद खाटीक को वह रकम मिली। जावेद ने धर्म या जाति को नहीं देखा, उन्होंने केवल एक इंसान की तकलीफ को महसूस किया और अपने कर्तव्य का पालन करते हुए भाऊराव के पैसे वापस लौटाने का निश्चय किया। यह केवल पैसों की वापसी नहीं थी, बल्कि हिंदू-मुस्लिम एकता और इंसानियत का प्रतीक थी। जावेद ने समाज को दिखाया कि असली धर्म इंसानियत है।
जावेद ने न केवल पैसों को लौटाया, बल्कि इस नेक काम को मालेगांव के प्रसिद्ध समाजसेवक और बारा बलुतेदार संस्था के अध्यक्ष, बंडु काका के हाथों से करवाया, ताकि इस घटना की सच्चाई और जावेद की ईमानदारी का संदेश समाज तक पहुंचे।
इस घटना ने एक बार फिर साबित कर दिया कि चाहे हालात कैसे भी हों, हिंदुस्तान में हिंदू-मुस्लिम भाईचारा और एकता हमेशा कायम रहेगी। जावेद खाटीक ने ये साबित कर दिया कि जब इंसानियत और भाईचारे की बात आती है, तो धर्म की दीवारें टूट जाती हैं और सच्चे इंसान उभर कर सामने आते हैं।
आज के समय में जब हमें समाज में बंटवारे और नफरत की खबरें सुनने को मिलती हैं, जावेद खाटीक जैसे लोग हमें याद दिलाते हैं कि असली ताकत एकता में है। उनकी यह कहानी हर किसी के दिल को छूने वाली है और हमें यह सिखाती है कि धर्म से बड़ा कोई रिश्ता नहीं, इंसानियत ही सबसे बड़ा धर्म है।
इस घटना ने यह साफ कर दिया है कि हिंदुस्तान की मिट्टी में इंसानियत और एकता का बीज हमेशा फलता-फूलता रहेगा। जावेद खाटीक की यह कहानी हमें याद दिलाती है कि असली हीरो वही होते हैं जो इंसानियत के लिए खड़े होते हैं।
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